- "जब-जब धर्म की हानी और अधर्म की वृद्धि होती है , तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ । "
(योगेश्वर श्री कृष्ण )
- "जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और भूमंडल पर आसुरी प्रकृति एवं अभिमानी पुरुषों की बढोतरी हो जाती है , तब-तब मैमानुष चोले में आता हूँ और सज्जनों के कष्ट और संकटों को निवारण करता हूँ ।"
(भगवन श्रीराम)
- "याही काज धारा हम जनम।समझ लेओ साधू सब मनम॥
(विचित्र नाटक : श्री गुरु गोविन्दसिंह जी महाराज)
- जब समता धरम का प्रकाश लोप हो जाता है उस वकत फ़िर सत्पुरुष आकार अमली ज़िन्दगी द्वारा प्रकाश दिख्लातें हैं । "
(ग्रन्थ श्री समता विलास)
1 comment:
great thoughts !
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