Sunday

यह सदी

यह सदी है समृधि की,उत्पादों की और उपभोग की;यह सदी है गरीबी की आभाव की और भूख की;यह सदी है मानववाद की ,प्रजातंत्र की, और समाजवाद की ; यह सदी है क्रूरता की शोषण की और विषमता की। आज का धर्म हे भोग्प्रयानता ,आज का उदेश्ये है माया का संग्रह । क्या विचारक और क्या जाहिल ,क्या धनि और क्या दरिद्र -- सभी अंधी वासना का शिकार होकर एक दुसरे का नाश कर रहे है । अमीरों की हवस का अंत नही ; गरीबों की कुंठा का चोर नही । हर कोई भोग पदार्थों के लिए ललचा रहा है। न तो पूंजीवाद और न ही साम्यवाद -- इस भोगवाद के खतरे के प्रति जागरूक हैं । ज़रूरतों की ज्यादती ने साब को अँधा बना दिया है । आज एक सनिकट संकट के व्यापक भय से मानवता त्रस्त है और सुरक्षा के लिए विनाश के सामान बनने में व्यस्त है। वासना और चतुराई के इस अंधे युग में सादगी और मर्यादा का संदेश सहज विचारों से नही दिया जा सकता । मुनकिर अक्ल अमल के आगे झुकती है ; चतुराई मोज़ज़े से मात खाती है। गुरुदेव का जीवन एक ऐसा ही मोज़ज़ा था, एक अनुखा चमत्कार था । यहाँ मानवता की सीमाएं टूटती नज़र आती है , देवत्व का अभीमन गिरता नज़र आता है। यह दीनता और गरीबी की कहानी है; और इसी कारन यह ऐश्वर्ये और महिमा से दीप्त है । यह उस दिव्या पुरूष की कहानी है जिसकी रातें आसमान के तले कटती रहीं; जिसका जीवन एक बार की चाय पर चलता रहा ; जिसकी पच्चीस वर्ष की आयु के बाद कभी आँख न लगी। जंगलों और बियाबानो में बैठे उसके मुख से अनजाने ही देववाणी का प्रवाह निकलता रहा । यहाँ सोची बात से मतलब नही था ; यहाँ देखि का सौदा था । (मेरी गुरुदेव - लेखेक श्री सोमराज गुप्त ) संगत समतावाद

Power Unlimited: Relation of Man with God

A book by Shri D. N Saraf One of Gurudev's Diciples http://books.google.co.in/books?hl=en&id=uGIBiADylWUC&dq=power+unlimited&printsec=frontcover&source=web&ots=b4-IcMCfO5&sig=8pfxkQ6iektksxPHFMmsxvO2aBE&sa=X&oi=book_result&resnum=3&ct=result#PPP1,M1

Monday

गुरु नानक देव ने कहा है

1. ईशवर पर विश्वास और सब्र देवगुण इंसानों की खुराक है। 2. किसी को बुरा कहो यही शिक्षा का सारांश हैमुर्ख के साथ वाद विवाद मत करो। 3. मेरी बीवी,मेरा बेटा, मेरा बाप , मेरा भाई इनमे कौन हे जो मेरा हाथ पकडेगा ? जब में मौत के चंगुल में हुआ ,तो इनमे से कोई भी मुझे बचाने ना अपेगा। 4. चाँदी और सोना माहेज धोका है, और एक दिन वो खाक में मिल जावेगा। 5. जब कोई इंसान खुदा के साथ सम्बन्ध स्थापित करता हे ,उस पर आतम साक्षात्कार होजाता है कोई हिंदू हे कोई मुस्लमान ,सब केवल इंसान हैं
जब तुम आय जगत में जग हँसा तुम रोयेऐसी करनी कर चलो,तुम हँसो जग रोये॥ वह चल चल की उम्र खुशी से कटे तेरीवह काम कर की याद तुझे सब किया करेंजो ज़िक्र हो तेरा तो हो जिक्र खैर हीऔर नाम तेरा लें तो अदब से लिया करें

सत्पुरुष

सत का मखंड पाखंड खंडन ,सत्पुरुष जग आए। पाप विषाद का नाश कारन ते ,केते दुःख उठाये॥ (गुरुदेव महात्मा मंगत राम जी)

मैंने मांस खाना क्यूँ छोड़ा

मैं नदी किनारे पर खड़ा था। कुछ लोग पानी के कुछ जानवरों को पकड़कर नाव में डालकर दुसरे किनारे ले जा रहे थे । एक जानवर ने कुछ ही दूर जाकर पानी में छलांग लगा दी और तैरने लगा। पकड़ने वाले ने भी उसके पीछे छलांग लगा दी। जानवर ने उसको देखकर गति तेज़ कर दी लेकिन ज्यों ही वोह जानवर किनारे पर पहुँचने वाला था उन्होंने उसे पकड़ लिया । जानवर बुल्बुलाने लगा । लेकिन पकड़ने वाले उसे कहाँ छोड़ने वाले थे । मै बुल्बुलाती जान को देखकर उसके अंत को सहें न कर सका । उस दिन से मैंने मांस खाना छोड़ दिया। (रविंद्रनाथ टैगोर)

Sunday

पूजा पाठ में पाखंडी मत बनो

कए साल पहले की बात है की बंगाल का एक बड़ा ज़मीदार द्वारका नदी के किनारे बने तारापीठ में तारादेवी के दर्शन करने गयाउसने सोचा की दर्शन करने से पहले ही मुझे स्थान के रोजाना के नित्य नियम से छुट्टी पा लेनी चाहिए। इस लिए वह स्नान करके किनारे पर पूजा करने लगाआख़िर में ध्यान करने के लिए उसने आँखे बंद करलीउसी समय प्रसिद्ध संत "वाम्क्षेप" भी नदी में स्नान कर रहे थेवे ज़मीदार की ओर थोड़ी देर तक देखते रहे.फ़िर अचानक उसके ऊपर पानी की छींटे मर कर हँसने लगेज़मीदार की आँखें खुल गएवह समझ नही सका कि यह व्यक्ति मेरे ध्यान में विघ्न क्यूँ दल रहा हे? वह "वाम्क्षेप" जी को जानता भी नही था .थोड़ी देर तक तो धीरज पूर्वक उसने छींटे सहन किएलेकिन जब "वाम्क्षेप" का उसपर पानी फेंकना बंद हुआ तब उसे क्रोध अगयाउसने डाँटते हुए कहा:- तू , अँधा हे क्या? देखता नही में इश्वर का ध्यान कर रहा हूँ तू मुझे क्यूँ छेड़ रहा हे? इस पर संत अधिक ज़ोर से हसे और बोले :- तू ध्यान कर रहा हे या कलकाता कि मुराएंड कंपनी कि दुकान से जूते खरीद रहा हेऐसा कह कर वह और अधिक वेग से उसके ऊपर पानी उछालने लगेज़मींदार हैरान रह गया सचमुच ध्यान के समय उसका मन् कलकाता कि सड़कों पर थाऔर जुटा खरीदने के लिए उस दुकान पर भी गया था जिसका नाम संत "वाम्क्षेप" ने लिया थाउसने अंदाजा लगाया कि मन् कि बात जान लेने वाला कोई साधारण व्यक्ति नही है तब अत्यन्त संकुचित होकर विनीत भावः से ज़मींदार ने कहा :- आप ठीक कहते हें महाराज जी! मेरा मन् वहीं था जहाँ अपने कहा कृपया करके मुझे आशीर्वाद दीजियेजिससे मैं भटकने वाले इस मन् पर काबू पा सकू और ध्यान के समय में केवल भगवन का ही चिंतन करूँ "वाम्क्षेप" जी हस्ते हुए बोले ! मेरे बचे,पूजा पाठ में पाखंडी मत बनो

दीपक का प्रकाश

पतंगे को दीपक का प्रकाश मिल जाए तो फ़िर वो अंधेरे में नही लौटता , भले ही उसे दीपक के साथ प्राण गवाने पड़े। जिन्हें आतम बोध का प्रकाश मिल जाता है, वह अविद्या के अंधकार में नही भटकते, भले ही उन्हें धर्म के मार्ग में अपना सर्वसव समाप्त करना पड़े

श्री सतगुरु फरमान

जिसके जानने से सब कुछ जन जाता है। जिस की प्राप्ति से परम संतोख प्राप्त हो जाता है। वह ही निर्भैये पद अविनाशी शब्द सर्व अन्तर में प्रकाश कर रहा है।एकाग्र चित्त होकर इस का सिमरण ध्यान करना ही सर्व आनंद केदेने वाला है। यह ही साधन परम धन है॥

एक विचार

मनुष्य के अंदर बहुत से भावः है। इनमें एक भावः अहंग भावः है। जिसके कारन मनुष्य अपने आपको,करता समझ लेता है और नातेज़े के तौर पर जब उसे किसी काम में कामयाबी या नाकामयाबी (असफलता) मिले तो वह उससे सुखी और दुखी होता रहता है। वास्तव में यह अहंग भावः ही सुख-दुःख का कारन है। यदि इंसान अहंग भावः को त्याग दे तो सुख-दुःख के थपेडों से बच सकता है.

अमर वाणी

करम गति अपार है , जीव नहीं छूटन पाये "मंगत" जैसी कामना ,ऐसे रूप समाये॥ सत सरूप पहचान से,त्रैगुण मिटे विकार। "मंगत" सो सत शान्ति,निर्भय पद निर्धार॥