Sunday

गौतम बुद्ध व् उनके परम शिष्य आनन्द का संवाद

प्रिय शिष्य आनन्द ने जब भगवन के मुख से अपने समीप आये परि-निर्वाण का वचन सुना तो उसका ह्रदय शोक से विदीर्ण हो गया । उसकी आँखों से अविरल अश्रु धरा बहने लगी । उसे शोका कुल देख कर भगवान् बुद्ध ने गंभीर स्वर से फिर कहना शुरू किया :- आनन्द! क्या तुम आतम-विश्वास को खो बैठे हो ? क्या मैंने तुमसे यह बात बार-बार नहीं कही है की प्रिय वस्तु से विच्छेद अवश्यंभावी है? जिसका जमन हुआ है उसका मरण निश्चित है । यह संसार का ध्रुव नियम है। इसलिए यह कैसे हो सकता है की मै अमर हो कर मृत्यु लोक मे सदा बैठा रहू? आनन्द! मेरा शरीर अब बहुत वृद्ध हो चुका है। इसकी जीवन यार्ता समाप्त हो चुकी है। मै अब अस्सी वर्ष की आयु तक पहुच चुका हू। जिस प्रकार एक जीर्ण रथ के लिए अधिक यात्रा करनी कठिन होती है । उसी प्रकार इस मेरे वृद्ध शरीर के लिए अधिक देर तक जीवित रहना कठिन है।

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