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जीवन की सफलता

परमेश्वर महान है। उसी ने सृष्टि का निर्माण किया है। जिस प्रकार एक पेड़ का आधार उसकी जड़ें होती है उसी प्रकार समस्त संसार आधार परमेश्वर है। अच्छे कर्मों के बाद ही मानव शरीर प्राप्त होता है। संसार में मानुष योनी के अतिरिक्त जितनी भी योनियाँ है उनमें जीव अपने कर्मों का फल भोगता है। मानुष को चाहिए जीवन को बर्बाद ना करें ।परमात्मा का चिंतन करके अपने जीवन को महान बनाया जा सकता है । बगेर चिन्तें से मन की पवित्रता में वृद्धि नही होती है। इसके आलावा परमात्मा की स्तुति से मनुष्य के चित्त की शुद्धता और प्रार्थना से अंहकार पर काबू पाया जा सकता है। आदतें आदमीं का जीवन चरित्र बनती है । वहि व्यक्ति अपने जीवन का मालिक होता है, जो अपने निरंकुश स्वभाव और आदतों पर विजय प्राप्त करलेता है। जो अपनी ही आदतों से पराजित हो जाता है वह गुलाम है। धर्म जब जीवन में उतर जाता है ,तो वह चमत्कार करता है । वह जनम जन्मान्तरों के कष्ट काटकर जीवन को ऊंचा उठा देता है। करम शुधि का ध्यान रख कर ही मानव अपने जीवन को आनंद पूर्ण बना सकता है। जीवन में कुछ बन्ने के लिए खास तरह के अनुशासन की आवश्यकता होती है। अनुशासन में शक्ति होती है, बल होता है। इस लिए सत्संग में आने वाले साधक को अनुशासन में रहना ज़रूरी है। आतम कल्याण के मार्ग में पूर्ण रूप से एकाग्रचित होकर बैठना चाहिए।जीवन को व्यवस्थित बनने की भी आवश्यकता है। व्यवस्थित जीवन मनुष्य को संतुलित बनता है।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर विचार।

Nandini Mehta said...

I am going to read this out to a friend of mine over the telephone. We have no option but do our "SATSANG" telephonically, as we are more than two thousand kms away. Very valuable words. Can alter life,if followed.