Sunday

"वह आत्मा हम हैं"

जा बोल ता अक्षर आवा , जा अबोल ता मन न रहावा । बोल अबोल बीच है जोई , जो जस है तिस लखे न कोई। भावार्थ : - कबीर जी कहतें है की जहाँ वाणी है वहां शब्द अक्षर भी होते हैं और जहाँ अबोल यानि वाणी नही है मौन है यानि जो अशब्द पद हैं वहां मन नही रहता। दुसरे शब्दों में जब मन में फुरना होता है तब वहां शब्द वाणी भी होती है। जब मन का स्फूर्ण शांत होता है वहां वाणी भी शांत हो जाती है। अब कबीर साहिब आगे कहतें हैं की बोल अबोल,वाणी व् मौन या फुरना अफुरना इन दोनों के बीच में जो इनको जानने वाला और सिद्ध करने वाला है उसका जैसा स्वरूप है उसको कोई नही जनता । वह चेतन सत्ता जिसको ब्रह्म या आत्मा कहते है। वहि बोल अबोल के मध्य में रहती ,उनको अनुभव करती और सिद्ध करती है। वास्तव में वही हमारा सत्य स्वरुप आत्मा है। फूरना और अफूरना , विकल्प , निर्विकल्प यह मन की दो अवस्थाएँ हैं । आत्मा उनका साक्षा अवं दृष्ट है। वह आत्मा हम हैं ।

No comments: