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Sunday
यह सदी
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Power Unlimited: Relation of Man with God
A book by Shri D. N Saraf One of Gurudev's Diciples
http://books.google.co.in/books?hl=en&id=uGIBiADylWUC&dq=power+unlimited&printsec=frontcover&source=web&ots=b4-IcMCfO5&sig=8pfxkQ6iektksxPHFMmsxvO2aBE&sa=X&oi=book_result&resnum=3&ct=result#PPP1,M1
Monday
गुरु नानक देव ने कहा है
1. ईशवर पर विश्वास और सब्र देवगुण इंसानों की खुराक है।
2. किसी को बुरा न कहो यही शिक्षा का सारांश है।मुर्ख के साथ वाद विवाद मत करो।
3. मेरी बीवी,मेरा बेटा, मेरा बाप , मेरा भाई इनमे कौन हे जो मेरा हाथ पकडेगा ? जब में मौत के चंगुल में हुआ ,तो इनमे से कोई भी मुझे बचाने ना अपेगा।
4. चाँदी और सोना माहेज धोका है, और एक दिन वो खाक में मिल जावेगा।
5. जब कोई इंसान खुदा के साथ सम्बन्ध स्थापित करता हे ,उस पर आतम साक्षात्कार होजाता है। न कोई हिंदू हे नकोई मुस्लमान ,सब केवल इंसान हैं।
सत्पुरुष
सत का मखंड पाखंड खंडन ,सत्पुरुष जग आए।
पाप विषाद का नाश कारन ते ,केते दुःख उठाये॥
(गुरुदेव महात्मा मंगत राम जी)
मैंने मांस खाना क्यूँ छोड़ा
मैं नदी किनारे पर खड़ा था। कुछ लोग पानी के कुछ जानवरों को पकड़कर नाव में डालकर दुसरे किनारे ले जा रहे थे । एक जानवर ने कुछ ही दूर जाकर पानी में छलांग लगा दी और तैरने लगा।
पकड़ने वाले ने भी उसके पीछे छलांग लगा दी। जानवर ने उसको देखकर गति तेज़ कर दी लेकिन ज्यों ही वोह जानवर किनारे पर पहुँचने वाला था उन्होंने उसे पकड़ लिया । जानवर बुल्बुलाने लगा । लेकिन पकड़ने वाले उसे कहाँ छोड़ने वाले थे । मै बुल्बुलाती जान को देखकर उसके अंत को सहें न कर सका । उस दिन से मैंने मांस खाना छोड़ दिया।
(रविंद्रनाथ टैगोर)
Sunday
पूजा पाठ में पाखंडी मत बनो
कए साल पहले की बात है की बंगाल का एक बड़ा ज़मीदार
द्वारका नदी के किनारे बने तारापीठ में तारादेवी के दर्शन करने
गया। उसने सोचा की दर्शन करने से पहले ही मुझे स्थान के
रोजाना के नित्य नियम से छुट्टी पा लेनी चाहिए।
इस लिए वह स्नान करके किनारे पर पूजा करने लगा।आख़िर में ध्यान करने
के लिए उसने आँखे बंद करली। उसी समय प्रसिद्ध संत
"वाम्क्षेप" भी नदी में स्नान कर रहे थे। वे ज़मीदार की ओर थोड़ी
देर तक देखते रहे.फ़िर अचानक उसके ऊपर पानी की छींटे
मर कर हँसने लगे । ज़मीदार की आँखें खुल गए । वह समझ
नही सका कि यह व्यक्ति मेरे ध्यान में विघ्न क्यूँ दल रहा हे?
वह "वाम्क्षेप" जी को जानता भी नही था .थोड़ी देर तक तो धीरज
पूर्वक उसने छींटे सहन किए। लेकिन जब "वाम्क्षेप" का उसपर
पानी फेंकना बंद न हुआ तब उसे क्रोध अगया । उसने डाँटते
हुए कहा:- तू , अँधा हे क्या? देखता नही में इश्वर का ध्यान कर
रहा हूँ तू मुझे क्यूँ छेड़ रहा हे? इस पर संत
अधिक ज़ोर से हसे और बोले :- तू ध्यान कर रहा हे
या कलकाता कि मुराएंड कंपनी कि दुकान से
जूते खरीद रहा हे। ऐसा कह कर वह और अधिक वेग से
उसके ऊपर पानी उछालने लगे। ज़मींदार हैरान रह गया
सचमुच ध्यान के समय उसका मन् कलकाता कि सड़कों
पर था। और जुटा खरीदने के लिए उस दुकान पर भी गया था।
जिसका नाम संत "वाम्क्षेप" ने लिया था । उसने अंदाजा लगाया
कि मन् कि बात जान लेने वाला कोई साधारण व्यक्ति नही है।
तब अत्यन्त संकुचित होकर विनीत भावः से ज़मींदार
ने कहा :- आप ठीक कहते हें।
महाराज जी! मेरा मन् वहीं था जहाँ अपने कहा।
कृपया करके मुझे आशीर्वाद दीजिये । जिससे मैं
भटकने वाले इस मन् पर काबू पा सकू और ध्यान
के समय में केवल भगवन का ही चिंतन करूँ।
"वाम्क्षेप" जी हस्ते हुए बोले ! मेरे बचे,पूजा पाठ
में पाखंडी मत बनो।
दीपक का प्रकाश
पतंगे को दीपक का प्रकाश मिल जाए तो
फ़िर वो अंधेरे में नही लौटता , भले ही उसे
दीपक के साथ प्राण गवाने पड़े। जिन्हें आतम
बोध का प्रकाश मिल जाता है, वह अविद्या के
अंधकार में नही भटकते, भले ही उन्हें धर्म के
मार्ग में अपना सर्वसव समाप्त करना पड़े।
श्री सतगुरु फरमान
जिसके जानने से सब कुछ जन जाता है।
जिस की प्राप्ति से परम संतोख प्राप्त हो जाता है।
वह ही निर्भैये पद अविनाशी शब्द सर्व अन्तर में प्रकाश कर रहा है।एकाग्र चित्त होकर इस का सिमरण ध्यान करना ही सर्व आनंद केदेने वाला है। यह ही साधन परम धन है॥
एक विचार
मनुष्य के अंदर बहुत से भावः है। इनमें एक भावः अहंग भावः है। जिसके कारन मनुष्य अपने आपको,करता समझ लेता है और नातेज़े के तौर पर जब उसे किसी काम में कामयाबी या नाकामयाबी (असफलता) मिले तो वह उससे सुखी और दुखी होता रहता है। वास्तव में यह अहंग भावः ही सुख-दुःख का कारन है। यदि इंसान अहंग भावः को त्याग दे तो सुख-दुःख के थपेडों से बच सकता है.
अमर वाणी
करम गति अपार है , जीव नहीं छूटन पाये ।
"मंगत" जैसी कामना ,ऐसे रूप समाये॥
सत सरूप पहचान से,त्रैगुण मिटे विकार।
"मंगत" सो सत शान्ति,निर्भय पद निर्धार॥
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