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पूजा पाठ में पाखंडी मत बनो

कए साल पहले की बात है की बंगाल का एक बड़ा ज़मीदार द्वारका नदी के किनारे बने तारापीठ में तारादेवी के दर्शन करने गयाउसने सोचा की दर्शन करने से पहले ही मुझे स्थान के रोजाना के नित्य नियम से छुट्टी पा लेनी चाहिए। इस लिए वह स्नान करके किनारे पर पूजा करने लगाआख़िर में ध्यान करने के लिए उसने आँखे बंद करलीउसी समय प्रसिद्ध संत "वाम्क्षेप" भी नदी में स्नान कर रहे थेवे ज़मीदार की ओर थोड़ी देर तक देखते रहे.फ़िर अचानक उसके ऊपर पानी की छींटे मर कर हँसने लगेज़मीदार की आँखें खुल गएवह समझ नही सका कि यह व्यक्ति मेरे ध्यान में विघ्न क्यूँ दल रहा हे? वह "वाम्क्षेप" जी को जानता भी नही था .थोड़ी देर तक तो धीरज पूर्वक उसने छींटे सहन किएलेकिन जब "वाम्क्षेप" का उसपर पानी फेंकना बंद हुआ तब उसे क्रोध अगयाउसने डाँटते हुए कहा:- तू , अँधा हे क्या? देखता नही में इश्वर का ध्यान कर रहा हूँ तू मुझे क्यूँ छेड़ रहा हे? इस पर संत अधिक ज़ोर से हसे और बोले :- तू ध्यान कर रहा हे या कलकाता कि मुराएंड कंपनी कि दुकान से जूते खरीद रहा हेऐसा कह कर वह और अधिक वेग से उसके ऊपर पानी उछालने लगेज़मींदार हैरान रह गया सचमुच ध्यान के समय उसका मन् कलकाता कि सड़कों पर थाऔर जुटा खरीदने के लिए उस दुकान पर भी गया था जिसका नाम संत "वाम्क्षेप" ने लिया थाउसने अंदाजा लगाया कि मन् कि बात जान लेने वाला कोई साधारण व्यक्ति नही है तब अत्यन्त संकुचित होकर विनीत भावः से ज़मींदार ने कहा :- आप ठीक कहते हें महाराज जी! मेरा मन् वहीं था जहाँ अपने कहा कृपया करके मुझे आशीर्वाद दीजियेजिससे मैं भटकने वाले इस मन् पर काबू पा सकू और ध्यान के समय में केवल भगवन का ही चिंतन करूँ "वाम्क्षेप" जी हस्ते हुए बोले ! मेरे बचे,पूजा पाठ में पाखंडी मत बनो

3 comments:

Guman singh said...

welcome bhai saab
nice post

author said...
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Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.