मनुष्य के अंदर बहुत से भावः है। इनमें एक भावः अहंग भावः है। जिसके कारन मनुष्य अपने आपको,करता समझ लेता है और नातेज़े के तौर पर जब उसे किसी काम में कामयाबी या नाकामयाबी (असफलता) मिले तो वह उससे सुखी और दुखी होता रहता है। वास्तव में यह अहंग भावः ही सुख-दुःख का कारन है। यदि इंसान अहंग भावः को त्याग दे तो सुख-दुःख के थपेडों से बच सकता है.
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