एक बार गुरुदेव कि मुलाक़ात एक मौनी संत
से गोल्डा (रावलपिंडी,पकिस्तान) में अकेले
में लिख कर हुई.यह सब वार्तालाप लिखित
रुप से वाणी में था।
गुरुदेव: कौन देस किस जा से तुम आई ।
किस कारन यह भेख बनाईं।
मौनी संत : न देस न विदेश से आई ।
सम तत्त में नित राम्नाई ।
कारन अकारण कोई ना सुझा।
तुम किरपा से पाई सम पूजा ।
गुरुदेव: किस जुगत कर यह परम पद पाया।
किस गुरु ने गुह्य ज्ञान समझाया ।
मौनी संत : प्राण अपांन ने सैट सुख लाया।
शब्द गुरु से परम पद पाया।
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