Monday

सम्तावाद एक परिचय

  • समता का असली अर्थ है कि हर हालत में एकरस होना,ग्रहन और त्याग कि कामना से मुक्ति हासिल करना।
  • समता स्वरूप असली ब्रह्म शब्द है जो हर हालत में पूर्ण है और सबके अंतर व्याप्त है।
  • समता ईश्वरी शक्ति का यथार्थ स्वरूप और गुण है। समता स्वरूप ईश्वरी सत्ता सदैव कल एकरस होकर विचरती है ।
  • सत्पुरुष श्री मंगत राम जी ने समता सिद्धांत में किसी ऐसी बात का उल्लेख नही किया जिसको उनके पूर्ववर्ती ऋषियों,संन्तो और सिधों ने न कहा हो। सम्तावाद हर मज़हब ,पंथ ,संप्रदाय ,जाती और देश के लोगों को समान रुप से देखता है। यह बात खास तौर पर जानने योग्य है कि सम्तावाद कोई मज़हब ,पंथ या गिरोह नही बल्कि प्राचीन अध्यात्मिक विचारधारा है। हर व्यक्ति अपना परंपरागत विश्वास या मज़हब छोड़े बिना इसको अपनाकर अपनी अध्यात्मिक उन्नति का पुरा-पुरा लाभ उठा सकता है।
  • सम्तावाद किसी तरह के गुरूद्म ,महन्तायी व गुरू ग्द्द्दी पर विश्वास नही रखता ।
  • सम्तावाद के अनुसार हर जीव संतुष्टि तथा शती के लिए दिन-रात प्रयत्न कर रह है। मान कि तृप्ति ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य है। इसी शांति व संतोष प्राप्ति हेतु सभी जीव इन्द्रियों के भोगों में दिन-रात मोहित हो रहे है। नाना प्रकार का जीवन सामान और सामग्री को इकठा करके मनुष्य अपने आप को भाग्यशाली मानता है.लेकिन वास्तव में सचाये तो यह है कि ज्यों ज्यों वह इन्द्रियों के भोगों में आधिक आसक्त होता है उसका असंतोष और अशांति ज़्यादा ज़्यादा उसी मात्रा में बढती जाती है। यह बात हम सब दैनिक जीवन में अनुभव करते है। इस स्थिति को देखकर सम्तावाद इस सिद्धांत पर पहुँचा है और उसका यह आखरी फैसला है कि इन्द्रियों के भोग और भौतिक पदार्थ अपने मौलिक स्वभाव में मूलतः अत्यंत दुःख और कष्ट का कारन है। असली शती और संतुष्टि हमें बहरी जगत से प्राप्त होने वाली नही है। इसके लिए हमे अंतर्जगत में दाखिल होकर इसे प्रपात करना है।
  • जीव के खेद और बेचैनी का कारन बाहर के जगत कि भौतिक वस्तुओं कि प्रपात व अप्राप्त अवस्था नही बल्कि उसका अपना " अंहकार" है। जीव में "अहं" का बीज ही एक ऐसी वस्तु है जो उसे जनम-मरण के चक्र में घूमता हुआ उसे हर तरह से दुखित कर्ता है।
  • सम्तावाद कि मान्यता है कि भौतिक ज्ञान एवम बौद्धिक ज्ञान मनुष्य को चरम सत्य एवम परम शांति तक नही पहुंच सकते । बुद्धि उस परम प्रकाश्मयी अवस्था को बोध करने में असमर्थ है। उस प्रकाश्मयी अवस्था को केवल अबोध और असोच होकर ही जाना जा सकता है।
  • सम्तावाद भारत कि पुरातन अध्यात्मिक परम्परा कि पुष्टि कर्ता है जिसके अनुसार 'अहम-भाव' ही संसार और दुःख का मूलभूत कारन है। अंहकार ही सबसे बड़ी मुरखता और जड़ता है। 'सम्तावाद' में अंहकार रहित होने का मतलब है कि अपने 'अहम' को उस परम शक्ति को समर्पण कर देना और हर क्षण अपने आप को तन ,मन और धन से साड़ी जगती को उस महा-शक्ति का स्वरूप जानकर निरभिमान होकर निष्काम भव से सेवा में समर्पित कर देना।
  • सम्तावाद के अनुसार आजकल कि भौतिकवादी अंधी दौड़ एवम ज़रूरतों कि अधिकता बढ़ाने वाले दृष्टिकोण सत समाज के लिए बहुत हानिकारक है । सम्तावाद मानव के मानव पर अत्याचारों को बड़ा पाप समझता है । अतः मौजूदा वर्ण - व्यवस्था और छूत - छात् का भेद-भाव उसकी दृष्टि में सत समाज के लिए बड़ा अवान्च्निये है।
  • 'संगत सम्तावाद' असली प्रेम और शांति प्राप्ति कि संस्था है। इसकी बुनियाद सादगी ,सेवा और सत पर खडी है । यह हर तरह कि दिखावटी व बनावटी जीवन के विरुध है। सम्तावाद प्रेम ,उदारता ,सहनशीलता और मानसिक सयाम पर बड़ा जोर देता है और इसके लिए संस्था एक शांतिमय आंदोलन द्वारा जनता के उतार्थ हेतु सर्वदा प्रयातान्शील है।

No comments: